CG NEWS: छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में एक अनोखा मंदिर स्थित है, जो वफादारी और प्रेम की मिसाल पेश करता है। बलौदा विकासखंड के महुदा गांव में स्थित यह मंदिर किसी देवी-देवता का नहीं, बल्कि एक वफादार श्वान (कुत्ते) का है।
कैसे बनी यह अनोखी परंपरा
कहानी 16वीं शताब्दी की है, जब रतनपुर व्यापार का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। उस समय नायक नाम के एक व्यापारी ने रतनपुर के मालगुजार (जमींदार) से कर्ज लिया था। वह समय पर कर्ज चुकाने में असमर्थ था, इसलिए उसने अपने सबसे वफादार श्वान ‘मोती’ को गिरवी के रूप में मालगुजार के पास छोड़ दिया।
एक रात मालगुजार के घर में चोरी हो गई, लेकिन मोती ने कोई आवाज नहीं की। गुस्से में आकर मालगुजार ने उसे पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। बाद में जब सच्चाई सामने आई, तो पता चला कि मोती ने चोरों को देख लिया था और चोरी का पता भी बता दिया था। तालाब के पास जाकर जब देखा गया, तो वहां सारा चोरी किया हुआ सामान पड़ा मिला।
मालगुजार, व्यापारी के कर्ज को माफ कर देता है और मोती के गले में एक पत्र बांधकर उसे वापस व्यापारी के पास भेज देता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, व्यापारी को लगता है कि मोती वहां से भागकर वापस आ गया है। गुस्से में उसने डंडे से मारकर मोती की हत्या कर दी। बाद में पत्र पढ़कर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और अपराधबोध में उसने मोती की याद में तालाब के किनारे एक मंदिर बनवा दिया।
मंदिर का वर्तमान स्वरूप
इस मंदिर का निर्माण प्राचीन वास्तुकला के अनुसार किया गया था, जिसमें एक गर्भगृह, चारों ओर दरवाजे और शिखर पर गुम्बद था। मंदिर की दीवारों पर शिलालेख भी लगे थे, लेकिन देखरेख के अभाव में यह अब खंडहर में तब्दील हो चुका है।
पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित करने की कोशिश नहीं की, जिस कारण यह ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षित पड़ी है। ग्रामीणों के अनुसार, यह मंदिर न केवल मोती की वफादारी की याद दिलाता है, बल्कि यह सच्ची मित्रता और बलिदान का प्रतीक भी है।
संरक्षण की आवश्यकता
यह मंदिर छत्तीसगढ़ की संस्कृति और इतिहास का हिस्सा है, जिसे उचित देखभाल की जरूरत है। अगर इसे संरक्षित किया जाए, तो यह स्थल पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बन सकता है।
यह कहानी आज भी हमें वफादारी और प्रेम का सच्चा सबक सिखाती है।