CG NEWS : छत्तीसगढ़ी गुरतुर भाषा है। यह केवल बातचीत का जरिया नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और आत्मा को जोड़ने वाली भाषा है। हमें अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा पर गर्व है।
मुख्यमंत्री श्री साय ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के दो दिवसीय आठवें प्रांतीय सम्मेलन 2025 के उद्घाटन अवसर पर यह बात कही। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा हमारी पहचान का हिस्सा है और इसे संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है।
सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों से आए भाषा प्रेमियों, विद्वानों और साहित्यकारों ने छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास और संवर्धन पर चर्चा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार छत्तीसगढ़ी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए विशेष योजनाएं भी बनाई जा रही हैं।
इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्तियों ने छत्तीसगढ़ी भाषा के महत्व पर अपने विचार रखे और इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की जरूरत पर जोर दिया।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री साय ने राज्य सरकार के छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रति सम्मान और उसके प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे प्रयासों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को बढ़ावा देना और इसे नई ऊंचाइयों तक ले जाना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके प्रयासों से वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण हुआ, जिससे हमारे पूर्वजों के सपने साकार हुए।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ी में बेहतरीन साहित्य रचा जा रहा है, जो भाषा के संवर्धन में अहम भूमिका निभा रहा है। इसी क्रम में उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा की 11 नई पुस्तकों का विमोचन किया, जिनमें “भागमानी”, “छत्तीसगढ़ के छत्तीस भाजी”, “छतनार”, “चल उड़ रे पचुक चिरई”, “एक कहानी हाना के”, “गंगा बारू” और “माटी के दीया” जैसी किताबें शामिल हैं। इस अवसर पर राजभाषा आयोग के आठवें प्रांतीय सम्मेलन के अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामेश्वर वैष्णव, डॉ. रमेंद्र नाथ मिश्र, डॉ. विनय कुमार पाठक, श्री विवेक आचार्य, और डॉ. अभिलाषा बेहार सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित रहे।
मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ी भाषा के गौरवशाली इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि इसकी जड़ें शिलालेखों तक फैली हुई हैं। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ने अब तक डेढ़ हजार से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। इसके अलावा, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत अब बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जा रहा है, जिससे वे कठिन विषयों को भी आसानी से समझ सकते हैं।
सम्मेलन में मुख्यमंत्री श्री साय ने साहित्यकारों की मांग पर छत्तीसगढ़ी रचनाओं को स्कूलों की लाइब्रेरी में उपलब्ध कराने की घोषणा की, ताकि छात्र इन पुस्तकों का अध्ययन कर सकें।
इस कार्यक्रम के दौरान राज्य के कई वरिष्ठ साहित्यकारों का सम्मान भी किया गया, जिनमें डॉ. देवधर दास महंत, श्री काशीपुरी कुंदन, श्री सीताराम साहू “श्याम”, श्री राघवेन्द्र दुबे, श्री कुबेर सिंह साहू और डॉ. दादूलाल जोशी शामिल थे।
मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर 11 नई किताबों का विमोचन भी किया, जो विभिन्न साहित्यकारों की कृतियां हैं। इनमें छत्तीसगढ़ी कविता, उपन्यास और अनुवादित साहित्य शामिल है। इस आयोजन के माध्यम से छत्तीसगढ़ी भाषा को और अधिक लोकप्रिय बनाने और उसे मान्यता दिलाने का संकल्प लिया गया।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष श्री रामेश्वर वैष्णव ने अपने संबोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा की विभिन्न बोलियों का मानकीकरण आवश्यक है, ताकि इसे एकरूपता दी जा सके। इस अवसर पर संस्कृति और राजभाषा विभाग के संचालक श्री विवेक आचार्य ने आयोग के कार्यों पर प्रकाश डाला, और सचिव डॉ. अभिलाषा बेहार ने स्वागत भाषण दिया। इस सम्मेलन में प्रदेशभर से आए साहित्यकारों और गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही।